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आरजीएनयूएल में अंबेडकर जयंती: समानता और सम्मान का जीवंत उत्सव

  • Praveen Kumar
  • Apr 28
  • 4 min read

एक विचारशील और समावेशी पहल


17 अप्रैल, 2025 को राजीव गांधी नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ (आरजीएनयूएल), पटियाला में डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती एक विशेष और व्यापक कार्यक्रम के रूप में मनाई गई। यह आयोजन केवल औपचारिकता निभाने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि समानता, सामाजिक न्याय और मानवीय गरिमा के मूल्यों को आत्मसात करने का प्रयास बना। विश्वविद्यालय के शिक्षक, छात्र और गैर-शिक्षण कर्मचारी एकजुट होकर इस विशेष दिन को श्रद्धा और प्रतिबद्धता के साथ मनाने के लिए एक साथ आए। इस पहल ने यह दर्शाया कि डॉ. अंबेडकर की शिक्षाएं केवल इतिहास का विषय नहीं, बल्कि आज भी हमारे संस्थागत और व्यक्तिगत जीवन में उतनी ही प्रासंगिक हैं।


सप्ताहभर पहले की घटनाएं


अंबेडकर जयंती के मुख्य आयोजन से पूर्व, विश्वविद्यालय परिसर में श्रद्धा और सम्मान का वातावरण धीरे-धीरे आकार ले रहा था। विश्वविद्यालय ने इस महत्वपूर्ण दिन की तैयारी सप्ताह भर पहले ही शुरू कर दी थी। मुख्य द्वार पर डॉ. अंबेडकर की तस्वीर स्थापित की गई और मिठाइयाँ वितरित की गईं। इस दौरान, इस द्वार से गुजरने वाले प्रत्येक व्यक्ति ने श्रद्धा भाव से अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

सम्मेलन और व्यापक सहभागिता


मुख्य आयोजन के रूप में "डॉ. बी. आर. अंबेडकर द्वारा प्रदर्शित मूल्यों का सम्मान" विषय पर एक विशेष सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में विश्वविद्यालय के सभी वर्गों को आमंत्रित किया गया, ताकि हर व्यक्ति, चाहे वह शिक्षक हो, छात्र हो, शोधार्थी हो या गैर-शिक्षण स्टाफ, इस ऐतिहासिक अवसर का हिस्सा बन सके। सेमिनार हॉल में आयोजित इस कार्यक्रम में लगभग दो सौ सदस्य उपस्थित रहे, जो इस आयोजन के प्रति लोगों के उत्साह और प्रतिबद्धता को दर्शाता है।


गंभीर और प्रेरक वक्तव्य


समारोह में कुलपति प्रो. (डॉ.) जय शंकर सिंह जी, रजिस्ट्रार डॉ. इवनीत वालिया जी, डीन रिसर्च एंड स्टूडेंट वेलफेयर प्रो. (डॉ.) कमलजीत कौर जी और समन्वयक डॉ. जसलीन केवलानी जी जैसे गणमान्य व्यक्तित्व उपस्थित रहे। मुख्य वक्ता के रूप में पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला के समाजशास्त्र विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. गौतम सूद जी ने डॉ. अंबेडकर के जीवन, संघर्ष और विचारधारा पर व्यापक प्रकाश डाला। डॉ. सूद ने बताया कि डॉ. अंबेडकर केवल संविधान निर्माता नहीं थे, बल्कि एक क्रांतिकारी समाज सुधारक भी थे। उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर का जीवन संघर्ष आज भी हमें यह महत्वपूर्ण शिक्षा देता है कि समाज में व्याप्त अन्याय और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाना एक सतत प्रक्रिया है। समान अवसरों की स्थापना कोई एक दिन का काम नहीं। हमें यह समझना चाहिए कि जब तक हर व्यक्ति को समान अधिकार और सम्मान नहीं मिलेगा, तब तक हमारा संघर्ष जारी रहना चाहिए। वही डॉ. सूद ने अपने संबोधन में अनेक उदाहरणों के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि डॉ. अंबेडकर ने अपने समय में किस प्रकार शोषित, वंचित और दलित वर्गों के अधिकारों के लिए निरंतर संघर्ष किया। उन्होंने बताया कि डॉ. अंबेडकर को सामाजिक भेदभाव, अपमान और विरोध का सामना करना पड़ा, फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। आज हम सभी को डॉ. अंबेडकर के आदर्शों से प्रेरणा लेनी चाहिए। केवल बातों में उनका नाम लेना काफी नहीं है, बल्कि हमें अपने व्यवहार और सोच में भी समानता और इंसाफ को जगह देनी चाहिए। जब हम रोज़मर्रा के जीवन में उनके बताए रास्ते पर चलेगे, वही असली सम्मान होगा।


कुलपति का संवादात्मक दृष्टिकोण


कुलपति प्रो. (डॉ.) जय शंकर सिंह जी ने इस आयोजन को विशिष्ट बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने पारंपरिक भाषण की बजाय एक संवादात्मक शैली अपनाई। सबसे विशेष बात यह रही कि उन्होंने विश्वविद्यालय के सफाई कर्मचारियों और अन्य सहायक स्टाफ को भी मंच पर बुलाया और अपने विचार व्यक्त करने का अवसर दिया। यह एक साधारण प्रतीत होने वाला कदम था, लेकिन इसके गहरे निहितार्थ थे। इससे यह संदेश गया कि हर व्यक्ति, चाहे उसकी भूमिका कुछ भी हो, सम्मान और आवाज का हकदार है। कुलपति महोदय ने विशेष रूप से कहा कि यदि कोई कर्मचारी किसी कार्य हेतु हमारे पास आता है और वह कार्य हमसे संभव नहीं हो पाता, तब भी हमें उस व्यक्ति से सम्मानपूर्वक और संवेदनशीलता के साथ संवाद करना चाहिए। उनका यह संदेश संस्थागत संस्कृति में बुनियादी बदलाव की आवश्यकता को रेखांकित करता है।


खुला सत्र और सहभागिता की भावना


आयोजन में खुले सत्र के माध्यम से शिक्षकों, छात्रों और कर्मचारियों को अपने विचार व्यक्त करने का अवसर मिला। कई वक्ताओं ने डॉ. अंबेडकर के शिक्षा, लैंगिक समानता और संवैधानिक नैतिकता से जुड़े योगदानों पर अपने विचार साझा किए। डॉ. जसलीन केवलानी जी ने अपने वक्तव्य में इस बात पर बल दिया कि सामाजिक न्याय केवल नीतियों के बल पर नहीं बल्कि निरंतर संवाद, सहिष्णुता और शिक्षा के माध्यम से ही संभव किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर का दृष्टिकोण हमें यह सिखाता है कि अधिकारों की प्राप्ति के साथ कर्तव्यों के निर्वहन की भी उतनी ही आवश्यकता है।

समापन: गरिमा और समानता का संदेश


समारोह का समापन रजिस्ट्रार डॉ. इवनीत वालिया जी के सारगर्भित धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।उन्होंने एक गहरा संदेश देते हुए कहा, "ईश्वर ने सभी को समान बनाया है और हमें उनकी इच्छा में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।" उन्होंने गुरबाणी के शब्दों का उल्लेख करते हुए कहा "एक नूर ते सब जग उपजेया, कौन भले को मंदे?" (सभी एक ही दिव्य प्रकाश से उत्पन्न हुए हैं फिर कौन श्रेष्ठ या निम्न है?)। डॉ. वालिया ने यह भी कहा कि इस आयोजन को केवल एक दिन की गतिविधि के रूप में न देखकर, इसे विश्वविद्यालय की कार्यसंस्कृति का स्थायी हिस्सा बनाना चाहिए, जिससे हर दिन समानता और न्याय के आदर्शों की अनुभूति हो।


व्यक्तिगत प्रतिबिंब और आगे का मार्ग


मेरे लिए यह आयोजन अत्यंत प्रेरणादायी रहा। इस समारोह में भाग लेने के बाद मुझे यह गहराई से अनुभव हुआ कि डॉ. अंबेडकर के सिद्धांत केवल पुस्तकों में पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि वह हमारे जीवन को दिशा देने वाले सजीव और व्यावहारिक मार्गदर्शन हैं। उनके विचारों को केवल सिद्धांत के रूप में देखना उनके योगदान को कम आंकने जैसा होगा। मैं आशा करता हूँ कि आने वाले वर्षों में आरजीएनयूएल इस समावेशी परंपरा को और भी मजबूती से आगे बढ़ाएगा और डॉ. अंबेडकर के मूल्य-दर्शन को अपनी संस्था के हर पहलू में समाहित करेगा।

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लेखक: प्रवीण कुमार

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